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मंगलवार, 25 जून 2019

दो नयन



अपनी थिसिस पर काम करके सुधा  अलसाई  सी बैठी ही थी कि  डोरबेल ने चौंका दिया। दरवाजे पर डाकिया था।खत पर भेजने वाले व्यक्ति का नाम पढ़ते ही एक जोड़ी आँखें यादों में दौड़ गयीं ।पांच साल बाद इस नाम को पढ़कर विचारों की आंधी का सफर पूरा करते हुए वह शीतल मंद बयार भरे कॉलेज  के बगीचे में  पहुँच गई। जहाँ पहली बार उसको एकटक देखते हुए पाया। सुधा एक साधारण कद­ काठी नैन­नक्श वाली  लड़की थी ।लेकिन आज कॉलेज का प्रथम दिवस था  गुलाबी रंग का सूट उसकी आभा को और गुलाबी बना गया था ।एक जोड़ी आँखों के प्रथम परिचय से ही उसकी आँखे,M शर्म से नीचे  झुक गईं .नेत्रों का प्रथम परिचय गुलाबी आभा को लाल रंगत दे गया . वह आँखें फिर सुधा को दिखाई  दीं।  छः  महीने बाद जब सुधा कॉलेज से घर की ओर जा रही थी तभी वहाँ  भगदड़ मच  गई। भागती हुई औरत ने बताया कि आगे कुछ  शरारती लड़कों का दल तोड़­ फोड़ कर रहा था जिसके कारण लोग भड़क गए और वहां पत्थरबाजी होने लगी . सुधा को एक भागते हुए आदमी का एक जोरदार धक्का लगा वह  गिरने ही वाली थी कि  एक मजबूत  हाथों  ने उसे बचा लिया और उसका हाथ पकड़ कर दौड़ने लगा। यह सब इतने कम समय में हुआ कि सुधा को सँभलने का मौका भी मिला। घबराई हुई सी  जब वह रुकी तो उसने अपने आप को एक दुकान में पाया .उसने आवाज़ सुनी "अब आप सुरक्षित है। "उसने पलट कर देखा एक नवयुवक खड़ा नजर आया  उसे युवक के चेहरे से ज्यादा आँखें  पहचानी लगी  कॉलेज  का प्रथम दिवस उसकी स्मृति में तैर गया।  मैं  आपके कॉलेज  में ही पढ़ता  हूँ ।आप अपने घर कॉल करके  किसी को बुला लीजिए ।अकेले उधर जाना उचित नहीं है .
 सुधा जैसे  ही घर पहुंची उसे याद आया कि वह उस युवक को धन्यवाद करना तो भूल ही गई  उसने सोचा कॉलेज में मिलने पर धन्यवाद कर देगी  घटना के दस पन्द्रह  दिन तक पहले  उसकी  चोर नजरें   'हीरो ' को ढूंढती  रहीं फिर बेसब्र हुईं पर वह कहीं भी नजर नहीं आया   उसके स्पर्श का अहसास कभी कभी उसमे मीठी सी सिहरन भर देता था। 
धीरे­ धीरे कर के उसके कॉलेज के तीन वर्ष कब बीत गए पता ही नहीं चला  कॉलेज से विदाई का दिन भी बड़ा अजीब होता है जहाँ एक डिग्री मिलाने उत्सव की ख़ुशी होती है, तो वहां अपने साथियों से बिछड़ने का गम भी होता है  चारों तरफ हंसी­ ठहाके थे  तभी चिर­ परिचित श्याम नयनों  ने मानो पूरी दुनिया के वक्त को थाम लिया। तीन वर्ष पुराना समय कर फिर  वहीँ  थम गया था। उसकी पलकें स्थिर हो गयीं।  मानो नज़रें  झपकेंगी और वह फिर नज़रों से ओझल हो जाएगा . कल्पना ने सच का जामा  पहना और पल झपकते ही वे नयन  आँखों से ओझल हो गए। उसकी बेचैन नजरें चारोM तरफ उसे ढूँढने  लगीं  पर वह नजर नहीं आया तभी उसकी सहेली उमा ने कंधे पर हाथ मारते हुए कहा" क्या बात है इतनी बेचैन  नज़रों से किसे ढूंढा जा रहा है  कहीं  इसे तो नहीं।"  उसने देखा उमा के हाथ में छोटा सा गुलाबी लिफ़ाफ़ा था।  उसने पूछा ये क्या है  उमा ने कहा"आहा  बड़ी भोली बन रही है, जिसे देख कर पूरी दुनिया भूलकर एकटक देख रही थी उसी ने तुझे देने को कहा है। "सुधा ने नकली गुस्से  से कहाउमा क्या मज़ाक  कर रही है ।किसे देख रही थी..  मुझे कुछ नहीं चाहिए।  “ ठीक है, यदि ये तेरा नहीं है  तो इसे मैं यहाँ रख देती हूँ।  जिसका होगा वह लेता जाएगा।   उमा ने कहा।  वह एक मेज पर लिफाफा रख कर चली गई।  लेकिन सुधा की  बेचैन नजरें   लिफ़ाफ़े  का पीछा करती रहीं सभी की नजरें  बचाकर उसने लिफ़ाफ़ा धीरे से अपने पर्स में रख लिया।  
घर पहुँचते ही उसने अपनी माँ से कहा ,“बहुत थक गई हूँ सोने जा रही हूँ ,कोई मुझे तंग नहीं करेगा।  छोटे भाई रोहित ने चिढ़ाते हुए कहा" हाँ  लाट  गवर्नर आयी हैं ,पूरे  देश का बोझ इन्हीं  के ऊपर तो है।   और कोई समय होता तो भाई ­बहन का युद्ध शुरू हो गया होता।  पर आज के दिन वह चुपचाप कमरे की ओर  जाने को तत्पर हुई।  पीछे से मम्मी की आवाज सुनाई दी।  रोहित तुम्हारी बड़ी बहन है, देखो सचमुच थक गई है, उसे तंग मत करो, सोने दो उसे।  वह अपने कमरे में गई और दरवाजा बंद कर दिया  दरवाज़ा  बंद करते कांपते हाथों से जल्दी जल्दी वह पत्र निकला। पत्र पर केवल चार पंक्तियाँ और लिखने वाले का नाम था। 
जिंदगी में मुलाकातों की दास्ताँ भी अजब होती है,
अजनबी मिलते हैं,बिछड़ने के लिए। 
बिछड़ते हैं, मिलने के लिए,
               सब वक्त की चाहत पर निर्भरहै ।                                                                      सुधीर
सुधीर² नेत्रों से निकला स्नेह वारि इस नाम को सिंचित करता हुआ उसकी स्याही फैलाकर अपनी अमिट छाप छोड़ गया और यह नाम कहीं मेरे दिल में। 
उसके बाद धीरे­ धीरे पांच वर्ष बीत गए  ऍमº ए.  किया पी. एच. डी.  का तृतीय वर्ष चल रहा था।  माँ ने कई  रिश्ते देखे पर पर साधारण नैन­ नक्श के कारण कभी उनकी  तरफ़  से बात नहीं जमी और कभी मेरी तरफ से। कुल मिलाकर अभी तक चिर क्वारी बैठी थी। आज पांच साल बाद फिर वही चिर ­परिचित हृदयाहर्षिल नाम पढ़कर हाथ कॉलेज में प्रथम प्रेम ­पत्र पाने वाली  किशोरी के समान ही काँपने  लगे। कांपते हाथों से जब पत्र खोला तो  पढ़ा­ 
   
 सुधा 
नाम से पूर्व किसी भी सम्बोधन देने का दुस्साहस करने का अधिकारी अपने आप को नहीं समझता।  कॉलेज के प्रथम दिवस के प्रथम आकर्षण को प्रेम समझने की भूल नहीं करना चाहता था।  जीवन में काफी कुछ  करना था। बचपन से घर की आर्थिक स्थिति माँ की दयनीय हालत मुझे नयनों के पाश में बंधने की इजाजत नहीं देते  थे।  परन्तु चाहते हुए भी आज आठ साल बाद भी मन तुम्हारे नयनों हाथों के प्रथम स्पर्श के बंधन  से आजाद नहीं हो सका।  तुम्हारे नयनों में झलकते अपनेपन अपने विवश प्रेमी मन के वशीभूत हो यह पत्र लिखने का साहस कर सका हूँ।  आज मैं सफ़ल  नेवी ऑफिसर हूँ।  पिछले चार सालों में  अपने घर के आर्थिक संकट दूर कर चुका हूँ।  अपने परिवार में एक नवागन्तुक का स्वागत करने योग्य बन चुका हूँ।  बेहद भावुक संवेदनशील हूँ साथ ही अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी।  यदि मेरी प्रेम भरी पाती तुम्हें  दो अभागे चिर प्रतिक्षित नयनों की याद दिला  सकी हो,इस पत्र को रद्दी कागज समझ कर फेंक  देना।  यदि 'इनकी ' प्रतीक्षा ख़त्म हो चुकी हो तो मेरा पता है­ 
कैप्टन   सुधीर

देहरादून
तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में 
चिर प्रतिक्षित  
दो नयन 
सुधीर का पत्र पूरा पढ़ चुकने तक गालों पर फैली  शर्म की लाली अपनी तीव्र गर्माहट के साथ आँखों पर दस्तक देते हुए गर्म धार के रूप में फूट  पड़ी गालों दिल दोनों को ठंडा करने लगीं।  मुँह  धोकर जब शीशे में अपनी छवि देखी तो लाल आँखों में उमड़ी ढ़ेर  सारी  ख़ुशी दिखाई दी। जल्दी से खड़ी   हो गई।  अभी बहुत सारे काम करने हैं।  पत्र मम्मी को दिखाना है पापा को मनाना है तभी तो 'उनकी ' ख़ुशी 'हमारी ' ख़ुशी बन पाएगी।   
                                                                      पल्लवी गोयल      
  

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