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सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

एक काली लड़की


 उस समय मैं  कक्षा नौवीं की छात्रा थी । सात सहेलियों की पक्की टोली थी।जिसमें कुछ बहुत चुलबुली ,कुछ शरारती थी ।उसमें मैं काफी शांत अपनी दुनिया में खुश रहने वाली थी ।उसी समय कक्षा में एक नई छात्रा का प्रवेश हुआ ,नाम था शालिनी ।स्कूल यूनिफार्म की नीली कुर्ती ,सफेद चुन्नी और काले बालों की दो छोटी चोटियाँ उसके चेहरे के रंग से भी मिलती थी ।यही मेरी पूरी टोली की परेशानी का कारण बन गया ।सोहिनी ने रुबीना के कानों में कुछ फुसफुसकर कहा ,"इसका चेहरा कहां समाप्त हो रहा है और चोटी कहां से शुरू हो रही है, कुछ पता चल रहा है ?"यह वाक्य इतनी तेजी से कहा गया था कि पूरी टोली को सुनाई दे ।सभी अचानक से खिलखिला कर हंस दी। शालिनी ने सभी को हंसते देखकर पीछे मुड़कर देखा ।और खुद भी हँस दी बेचारी को यह पता ही नहीं था ,यह हंसी उसी के लिए रची गई थी। उसे मुस्कुराता देख कर पूरी टोली तो दाएँ-बाएँ देखने लगी पर उससे नजर मिलने पर मैंने मुस्कुरा कर थोड़ा सा हाथ उठाया ।तभी अध्यापिका ने डस्टर बजाकर सब को शांत होने का ऐलान कर दिया ।

शालिनी भी काफी चंचल थी।   हमारी टोली के तरफ उसका सहज आकर्षण स्वाभाविक था। उसने मित्रता का हाथ बढ़ाना शुरू किया लेकिन थामा किसी ने नहीं। सभी बगलें पकड़कर इधर-उधर हो लीं। शालिनी जब मैं मेरे पास आई ,मैंने उससे हाथ मिलाया ।टिफिन की छुट्टी थी अतः साथ ही खाना खाने का ऑफर भी दिया। मुझे नहीं पता था कि टोली के नियमानुसार मै अपराध कर बैठी थी ।शालिनी के टिफिन लेकर बैठते ही सभी ने अपनी-अपनी टिफिन थोड़ा अपनी और सरका ली। शालिनी ने इस बात पर गौर नहीं किया, लेकिन यह परिवर्तन मेरी नजरों से छुप न सका ।टिफिन की छुट्टी खत्म होते ही मुझे एक तरफ ले जाकर समझाया गया। तुम उसे टिफिन के लिए कैसे बुला सकती हो? कितनी काली है वह! मेरे लिए यह वाक्य नया था क्योंकि पिताजी के सिखाए हुए नियमों के अनुसार, रंग भगवान निश्चित करते हैं। हमारा रंग उन्हीं की देन है ।सो दुनिया में ईश्वर की दी हुई हर एक चीज यदि भली है तो काला रंग भी भला है। मुझे उस में कोई कमी नहीं दिखाई दी। मैंने यह तर्क अपने टोली को दिया भी लेकिन बेअसर रहा। उन्होंने साफ कहा," कल से शालिनी हमारे साथ टिफिन में शामिल नहीं होगी ।"मैंने थोड़ा सर झुकाते हुए कहा," ठीक है।" 

दूसरे दिन हमारी छह सहेलियां अलग टिफिन कर रही थी और मैं शालिनी के साथ अलग टिफिन कर रही थी ।शालिनी का मन तो चंचल टोली में बसा था ।उससे पूछा, "आज तुम सबके साथ टिफिन नहीं करोगी? मैंने बहाना बनाया नहीं, आज मेरा बृहस्पतिवार का व्रत है ।तुम मेरे साथ टिफिन करो।वह नहीं मानी वह सभी के साथ 'हैलो'करने गई। मेरी बाकी प्रिय सखियों ने मुंह मोड़ लिया ।वह बात समझ गई ।वह बोली,"मेरा रंग काला है ,इस वजह से सभी मेरे साथ दोस्ती नहीं करना चाहती है ना। मैंने कहा," नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ।"लेकिन वह फिर अपने आप से ही बोली ,"काश !मैं गोरी होती।"

इस पूरी घटना को कहानी के रूप में मैंने उस समय अपनी कक्षा को सुनाया ।जब लगभग वैसा ही व्यवहार एक सांवली छात्रा के साथ होता दिखा।
कभी-कभी कुछ व्यवहार जो हम करते हैं ,वह हम स्वयं देख -सुन नहीं सकते ।लेकिन वही व्यवहार जब दूसरे के द्वारा दोहराया जाता है ।उसकी बुराई हमें साफ- साफ नजर आ जाती है।
कहानी सुनाने के बाद इस सिद्धांत का परीक्षण छात्राओं के व्यवहार परिवर्तन से हो भी गया।

चित्र गूगल से साभार 

पल्लवी गोयल 

रविवार, 4 अक्टूबर 2020

उदयाचल


उदयाचल
 उदयाचल



'वह 'कल गांव में आया था ,जब हीरे की बेटी की  बरात दरवाजे थी। पूरा गांव घराती था और गांव का मेहमान 'वह ' देवता के पद पर बैठा दिया गया था। गोरा रंग, लंबा कद , पतला  लेकिन कसरती शरीर ।खाकी रंग के पैंट शर्ट में तो दिख भी विशेष रहा था।

 वैसे भी भारत  में  तो  खाकी रंग वह विशेष रंग है जिसका फीका रंग भी आंखों में दमकता है ,चाहे उसे डाकिया ने पहना हो या थानेदार ने ।दोनों ही गांव वालों के लिए भगवान से कम नहीं। डाकिया पैसे देकर जाता है और थानेदार लेकर ।

'वह'के चेहरे पर  जितनी सरल मुस्कान थी दिमाग उतना ही सतर्क और आंखें चौकन्नी थीं। इससे पहले जिस गांव में रुका था वह मेहमान नवाजी के मुआवजे में दस हजार  का चढ़ावा चढ़ा चुका था ।जो उसकी एक जेब गर्म कर रहा था। अब दूसरी ठंडी दुबली जेब गर्माहट के इंतजार में थी ।तभी उसकी चौकसआंखों ने दूर से ही घर के अंदर चल रही गर्मी की आशा नाप ली ।

खिड़की से झांक करके देखा तो पास के घड़े पर रुमाल में बंधी संभावित 'गर्मी 'हाथ सेकने का आमंत्रण दे रही थी। तभी धोती और सफेद कुर्ती पहने लड़की के बापू की आवाज सुनाई दी ।जो अभी कुछ देर पहले ही उसे इमरती चखने को देकर गया था। पास की उसकी आवाज  दूर गहरे से आती  सुनाई दी। "ले अभागी खा ले । तेरे पिता की सामर्थ्य तेरी डोली नहीं ,तेरी अर्थी उठाने की बची है ।अनाज बेचकर जो दस हजार  तेरे भाई को मिले थे ।पिछले गांव में किसी ने उसे पार कर दिया ।अब मेरी पगड़ी  तेरे हाथ है ।"

'वह' की आंखें पहले चौकी ,फिर चमकी। उसका  हाथ  जेब में रेंगा और फिर खिड़की के अंदर ।अंदर से भाई की आवाज सुनाई दी ।"पिताजी रूकिए ,यह देखिए।"

पिताजी ने शायद देखा ।लेकिन वह देखने के लिए नहीं रुका। सोचने लगा ।' गर्मी 'शायद अमानत थी ।सूर्य अस्ताचलगामी था, हवा चल रही थी ,हवा तेज होती जा रही थी पत्ते सुखद ठंडक का अहसास लिए हवा के साथ दौड़ रहे थे और' 'वह' उदयाचल सूर्य  सा एक दिशा में चढ़ता जा रहा था ।


पल्लवी गोयल 

चित्र गूगल से साभार