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मंगलवार, 25 जून 2019

नींव का पत्थर

लखनऊ के पुराने मोहल्लों में से एक मोहल्ले में पला बढ़ा महेश आज भी अपना बचपन नहीं भूल पाया है ।तीन मंजिला मकान में पिताजी के साथ -साथ चाचा, ताऊ का परिवार भी वहां खिलखिलाता था। मकान में जगह की कमी जरूर थी पर दिल बहुत बड़े थे। शाम होते ही गर्म छत को ठंडा करने के साथ-साथ सभी के बिस्तर बिछाए जाते सात बजते ही बजते बच्चे थक के चूर हो जाते और बड़े काम से लौट आते ।बच्चों का काम था नीचे रसोई घर से एक-एक रोटी लाकर बड़ों को परोसना । चाची ताइयों का काम था खाना बना कर फटाफट थाली लगाना। एक घंटा की अफरातफरी के बाद सभी छत पर अपने बिस्तर पर विराजमान होते ।इस बड़े जमावड़े के साथ शुरू होता हंसी ठहाके का सिलसिला। 9  बजते सभी नींद की आगोश में समा जाते। पत्रिकाएं आती तो एक नहीं दस आती ताकि पहले पढ़ने के लिए भाई -बहनों में आपस में झगड़े न हों। पाठ्यक्रम की किताब तो मानो खानदानी विरासत थीं। जो एक के बाद दूसरे भाई को शान के साथ सौंप दी जाती ।जिसमें हर एक भाई बहन की नायाब कारीगरी की छाप निशानी के रूप में मौजूद होती ।सुनहरे बचपन के साथ  महेश ने किशोरावस्था में प्रवेश किया।अभी तक तो सब कुछ सही था लेकिन बच्चों के बड़े हो जाने से सभी भाइयों ने समझौता किया । इस घर का साथ नहीं छोड़ेंगे लेकिन रहने के लिए अभी वह कुछ अलग इंतजाम करेंगे। सभी चाचा ताऊ के साथ महेश के पिताजी भी अलग फ्लैट में रहने के लिए आ गए। भरे- पूरे परिवार के साथ रहने के बाद पिताजी और मां दोनों को ही यह अकेलापन खलता जरूर था ।परंतु महेश और मीनू की पढ़ाई और पालन-पोषण में व्यस्त हो गए ।खर्चे बड़े थे सो माँ ने कुछ सिलाई का काम लाकर करना शुरू कर दिया और पिताजी ने ऑफिस में ओवरटाइम। सब कुछ यूं ही चलता रहा महेश अब इंजीनियर बन गया था और मीनू एक बड़े विद्यालय में अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी। पिताजी ने बड़े धूमधाम से मीनू की शादी कर दी ।मीनू के जाने के बाद जब अकेलापन खला ।मां बहू लाने की जिद करने लगी ।चूंकि  बेटा इंजीनियर था सो बहू भी पढ़ी- लिखी होनी चाहिए थी ताकि बेटे की सोसाइटी में उठ बैठ सके। खोज शुरू हुई और जल्दी ही खत्म में भी हो गई। मोहिता कॉन्वेंट एजुकेटेड सुंदर लड़की थी। मां को अपने मन मुताबिक बहू मिल चुकी थी। धूमधाम से शादी करने के बाद माँ ने सोचा महीने भर तक बहू के साथ रहेंगी। उसे घर के सारी जिम्मेदारी सौंपकर कुछ दिन तीर्थयात्रा के लिए निकल जाएंगी। परंतु हर सोचा हुआ  हो जाता तो यह दुनिया स्वर्ग बन चुकी होती ।अभी शादी के 1 महीना ही हुआ था। मां एक दिन मंदिर जा रही थी तभी एक कार ने जोर से टक्कर मारी ।बुढ़ापे का शरीर यह वार सह न सका और पूरा घर दुख में डूब गया। 15-20 दिन तक तो घर में आने जाने वालों का, शोक प्रकट करने वालों का तांता बंधा रहा ।परंतु इसके बाद महेश अपने काम पर जाने लगा और मोहिताअपनी सहेलियों और पार्टियों में व्यस्त रहने लगी। पिताजी को यह अकेलापन खाने लगा जिसकी वजह से वह लगातार बीमार रहने लगे ।डॉक्टर ने उन्हें बिना मिर्च मसाले का सादा खाना खाने की सलाह दी। मोहिता को जब पिताजी का खाना अलग से बनाना पड़ता वह मन ही मन भुनभुनती रहती ।महेश के कान भरने लगी थी" मैं पिताजी को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती ।जब देखो तब मेरा अपमान किया करते हैं ।जो भी खाना मैं बना लूं उनको कुछ पसंद ही नहीं आता ।"महेश ने रोज की कलह से बचने के लिए पिता जी की सेवा में एक काम वाली बाई रख ली। अभी भी मोहिता को चैन नहीं था ।पिताजी की खांसी की लगातार आवाज ,दवाई की  बदबू उसे जरा भी नहीं सुहाती थी ।नन्हे कमल के जन्म के बाद 5 वर्ष बीत चुके थे। कमल  जब भी दादाजी के पास जाकर उनके साथ खेलता ,वह डर जाती कि कहीं कोई बीमारी उसे भी अपनी चपेट में ना ले ले। महेश 1 महीने के लिए भुवनेश्वर ट्रेनिंग पर गया था और बाई दो दिन की छुट्टी पर गई थी।पिताजी ने कमल को बुलाते हुए कहा ,"बेटा मम्मी से कहो दादा जी बुला रहे हैं ।मोहिता के आने पर पिताजी ने कहा ,बहू,आज दवाई ले आना। दवाई 2 दिन पहले ही खत्म हो गई थी ।मैंने सोचा था महेश आएगा उसी से मंगा लूंगा ।लेकिन आज सवेरे से ही कुछ तकलीफ लग रही है ।"मोहिता वहां से मुंह बना कर चली गई ।रात जब आप पार्टी से वापस आई तो पिताजी ने उसे दवाई के लिए पूछा उसने बहुत सहजता  से जवाब दिया। "मैं भूल गई ,कल आ जाएगी आपकी दवाई ।" दूसरे दिन सवेरे पिताजी की तबीयत अधिक खराब लग रही थी ।उन्होंने कमल को आवाज दी और कहां ,"बेटा, मां को बुला ला।" और मन ही मन अपने आप से बात करने लगे। "उससे ₹500 ले लेता हूं और खुद ही दवाई लेकर आ जाता हूं।"कमल ने यह बात सुनी। मां फोन पर किसी से बात कर रही थी ।उसने मां को दो-तीन बार आवाज दी पर मोहिता ने अनसुना किया। कमल को सामने मां का पर्स दिखाई दिया।  उसमें से ₹पाँच  सौ  निकाला। बड़ी ही मासूमियत के साथ यह जाकर दादा जी को दे दिया पिताजी ने सोचा कि यह पैसा मोहिता ने दिया है । वह दवाई लेने बाजार की ओर चले गए। इधर मोहिता ने पूरा घर सिर पर उठा लिया। मोहित ट्रेनिंग से तुरंत ही वापस आया था  ।जैसे ही उसे घर में कदम रखा उसे मोहिता की कड़कड़ाती आवाज सुनाई दी," बोल फिर ऐसा करेगा?" साथ ही कमल के जोर -जोर से रोने की भी आवाज आ रही थी। महेश के कारण पूछने पर मोहिता गुर्रा," अब आपके पिताजी कमल को चोरी भी सिखा रहे हैं ।अब या तो वह इस घर में रहेंगे या मैं ।मैं कमल को लेकर मायके जा रही हूं।" पिताजी दरवाजे पर ही थे। उन्होंने यह सब बातें सुनी और कहा ,"बहू,तुम्हारा घर है ,तुम कहां जाओगी ?मैं जाता हूं ।"उदास कदमों के साथ उन्होंने अपना सारा सामान लगाया। छड़ी हाथ में लेकर बाहर आते हुए बोले," महेश मेरा सामान उठाते लाना।" महेश आश्चर्यचकित सा कभी मोहिता और कभी पिताजी को जाते हुए देखता रहा ।वह पिता  जी के पीछे चल पड़ा ।रास्ते में पिताजी ने कहा," दुखी मत हो, यहीं पर एक वृद्धाश्रम है। मैं अकेला घर में पड़ा- पड़ा घबराता रहता हूं ।वृद्ध आश्रम में चला जाऊंगा। वहां मेरे बहुत सारे मित्र हैं। मेरा मन लगा रहेगा ।जाओ! तुम अपना घर संभालो। "महेश भरे मन से पिताजी को लेकर उनके बताए रास्ते से  आश्रम की ओर जाने लगा ।रास्ते में उसे पुराना घर दिखा सबसे छोटे चाचा जी अभी भी वहां पूरे परिवार के साथ रह रहे थे ।उसने कार घर पर रोकी। चाचाजी का पूरा परिवार बड़े प्रेम से मिला। चाची जी शिकायत करने लगी ,"अपनी मां के जाने के बाद तो तू हम सबको भूल ही गया। बड़ा अच्छा किया जो इधर आया। कुछ दिन के लिए जेठ जी को इधर ही छोड़ दो ।चाचा जी भी आजकल पुराना समय बहुत याद करते हैं ।उनका भी मन लग जाएगा।" पिताजी के मना करने के बावजूद महेश पिताजी को वहां छोड़ कर आया। इस दृढ़ निश्चय के साथ पिताजी को कुछ समय के लिए यहां मन बदल लेने दो ।मैं नीव के पत्थर को पीछे नहीं छोड़ सकता ।इसी के ऊपर उसके व्यक्तित्व का मकान खड़ा था और ऐसा ही एक दृढ़् व्यक्तित्व उसे कमल के लिए भी चाहिए था।

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