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रविवार, 15 मार्च 2020



कार के पहिए की गति के साथ ही आशा के विचार भी सफर करते हुए सात साल पीछे पहुंच चुके थे। शादी होकर जब वह घर आई थी सास और दोनों ननदों ने हाथों हाथ  स्वागत किया था।  छह महीने  हंसी-खुशी बीते फिर एक  दिन सास से हँसते हुए कहा ,"बहू अब बस एक पोता मेरी गोद में दे दो।" आशा शरमाती हुई धीरे से अपने कमरे में चली गई ।साल बीतने पर सास ने उसे तिखार कर कहा ,"बस ,बहुत हो गई प्लानिंग! अब कर ही लो।" दो-तीन साल के बाद पाँच साल भी बीत गए और सास की गोद पोते से वंचित ही थी ।पीर, मजार, मंदिर, मस्जिद,और डाॅक्टर। कुछ भी उन्होंने नहीं छोड़ा धीरे-धीरे सात साल बीत गए। एक दिन बड़े विश्वास के साथ एक मुट्ठी किशमिश  लाईं और माथे लगाते हुए आशा को देते हुए बोली। "तीन साल बाद मेरे गुरुजी शहर आए हैं। उन्होंने बिना समस्या बताए ही मुझे कहा, जा ,अपने बहू को खिला दे।" बहू ने आज्ञा का पालन किया और माथे लगाकर उसे  खा लिया। दूसरे दिन सवेरे ही आशा को उल्टियां होने लगी ।गुरु जी की जय करते हुए कहा," देखा कितना जल्दी परिणाम आया ।जब डॉक्टर घर आए तो पता चला ।यह फूड प्वाइजनिंग थी। एक हफ्ते तक बिस्तर पर पड़ी आशा  बीते सात  सालों में हुए सारे टोने-टोटके को याद करती रही। माताजी का मन रखने के लिए वह यह सब कर रही थी लेकिन असलियत उसे पता थी ।बहुत इलाज के बाद भी पति उसे मां बनाने में सक्षम नहीं थे ।सारे डॉक्टर जवाब दे चुके थे पति- पत्नी का असीम प्रेम और विश्वास आशा को सास की सभी जायज- नाजायज बातें सहने में मदद करता था पर अब पानी सिर से ऊँचा उठ गया था। बीमारी के बाद जब आशा ने बिस्तर छोड़ा तो कार की चाबी उठाकर हल्की मुस्कान के साथ  कहा ,"माँ मैं आती हूं।" सास उसका चेहरा देख रही थी ।
एक झटके के साथ ही कार और आशा के विचारों को भी विराम मिल गया ।'निसर्ग 'अनाथालय को देखते ही उसने बगल की सीट पर बैठे पति को देखा। दोनों के चेहरे की मुस्कान और गहरी हो गई।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

12 टिप्‍पणियां:

  1. पल्लवी दी, यहीं समाज की सच्चाई हैं। ज्यादातर सास बहू को ही सब टोटके आदी करने को कहती हैं अपने बेटे में भी कमी हो सकती हैं यह सोचती ही नहीं। सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. ज्योति बहन, त्वरित प्रतिक्रिया के लिए सप्रेम धन्यवाद ।सोच का एकतरफा नजरिया व्यक्ति को स्वार्थी बना देता है। सोच में परिवर्तन ही समाज में सकारात्मक ला सकती है।

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  2. कहानी का अंत बहुत अच्छा लगा. आशा ने बहुत अच्छा निर्णय लिया. लोगों का नजरिया बदल जाए तो समाज में मनवांछित परिवर्तन हो सकता है.

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    1. सत्य वचन ।प्रतिक्रिया के लिए सप्रेम धन्यवाद।

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  3. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 18 मार्च 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आदरणीय पम्मी जी ,'पाँच लिंकों का आनंद' में रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार।

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  5. बहुत बढ़िया ....घर में गार्डन के लिए जगह न हो तो फूल गमले में भी खिलाया जा सकता है ..

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    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत है आदरणीया डॉक्टर निशा ।सार्थक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार ।

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  6. आशा की किरण जगाते हुए कहानी अच्छे मोड़ पे रुकी ...
    अनर्गल बातों को भी जितना जल्दी हो सच कर के सामने के आना भी ज़रूरी है समाज में ...

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