ट्रेन के हिलती सीट ने मानों मेरी यादों को भी झकझोर दिया था । सतना से मुंबई जाते समय महानगरी की सीट पर बैठी मैं एकटक सामने वाली सीट को देख रही थी ।जो खाली थी। परंतु दिमाग और मन दोनों अनेक यादों से भरे हुए थे।ट्रेन और मन दोनों में ही गति थी ,परंतु विपरीत दिशा में। जहां ट्रेन आगे का रास्ता तय करने के लिए गंतव्य तक पहुंचने को आतुर थी ।मेरा मन अतीत मैं पहुंच चुका था ।कारण था वह जोड़ा ,जो कभी मेरे जीवन का अटूट हिस्सा हुआ करता था।
कॉलेज के दिनों में मैं नीतू और रोहित तीनों के दिल अलग थे पर धड़कते एक साथ थे। हमारी दोस्ती के किस्से और कहकहो से कॉलेज के कैंपस गूंजते थे। रोहित की आदत थी वह मुझे और नीतू को बहुत छेड़ता था ।कभी किताबें छुपा देता,कभी अध्यापक का झूठा संदेशा देता। जब मैं और नीतू चिड़चिड़ाते तो जोर से ठहाके लगाते हुए कहता ,"ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है ,मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं ।"गंभीरता से दूर-दूर तक उसका नाता नहीं था ।मैं तो कभी हंस भी देती पर नीतू तुनक कर कहती," लगता है भगवान ने इसकी जिंदगी के शब्दकोश से गंभीरता नाम का शब्द हटा ही दिया है । "वह और जोर से ठहाके लगाता । दूसरे वर्ष में मेरी एक कक्षा उन दोनों से अलग हो गई थी , जब मैं उस कक्षा के लिए जाती ,दोनों पूरा समय साथ ही गुजारते थे ।कभी कैंटीन में बैठकर अध्यापकों की किस्से सुनाते ,कभी बगीचे के किनारे वाली छोटी बेंच पर बैठकर घंटों गुजार देते ।दोनों एक दूसरे की आदत बन गए थे ।हिंदी ऑनर्स के साथ साथ नीतू और रोहित कब प्यार का ऑनर्स भी कर बैठे थे । यह बात मुझे तो क्या उन्हें भी पता नहीं लगी थी ।पता चलने पर मैं उनके लिए बहुत खुश हुई। मेरे दिल के दो टुकड़े शायद एक अटूट रिश्ते में बंधने की तैयारी कर चुके थे।
वास्तव में उनके प्यार का यह सिलसिला थर्ड ईयर से ही शुरू हो चुका था । नीतू को नृत्य करने का शौक था ।बहुत दिनों से भरतनाट्यम की कक्षाएं शुरू करने के लिए सोच रही थी ।दो साल पहले जब उसके पिताजी का देहांत हुआ था ।घर की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई थी ।मां एक अध्यापिका थी जिससे घर और उसके कॉलेज का तो खर्चा निकल जाता पर शौक के लिए हाथ तंग हो जाता था ।मां को भी संगीत का शौक था इसलिए वह भरतनाट्यम में प्रभाकर के चार साल पूरे कर चुकी थी ।जब बातों ही बातों में नीतू ने रोहित से इसका जिक्र किया था ।रोहित ने उसके पीछे पड़ कर अपने एक मित्र के यहां कक्षाएं जारी करवाई । नीतू ने जब ना नुकुर की ।उसने बहुत ही गंभीर भाव से कहा ,"अब मेरे इतने बड़े एहसान की कीमत कल तुझे कैंटीन में एक चाय पिलाकर उतारनी होगी।" बात हंसी में निकल गई । नीतू ने शाम को एक ट्यूशन कर लिया और उसी से भरतनाट्यम की फीस भरने लगी ।भरतनाट्यम की कक्षाएं शुरू हो चुकी थी। अतः ट्यूशन कक्षा और कॉलेज के बीच में नीतू और रोहित का मिलना जुलना भी कम हो गया था ।जब तक दोनों मिलते थे तब तक तो सबकुछ ठीक था ।दोनों के बीच की दूरी ने रोहित की बेचैनी बढ़ा दी थी । उसे नीतू की कमी महसूस होने लगी थी। किसी दिन नीतू से यदि कॉलेज में भेंट नहीं होती वह उससे मिलने के लिए बेचैन हो नृत्य कक्षा की तरफ मुड़ जाता । उसने उसके साथ रहने का एक अनोखा तरीका ढूंढ लिया था वह प्रतिदिन नियम से उसे भरतनाट्यम की कक्षाएं लेकर जाता और उसे घर छोड़ते हुए घर जाता। नीतू के मना करने पर कहता," तुझे कौन लेने- छोड़ने जाता है। मैं तो तफरीह करने आता हूं तो सोचता हूं ,थोड़ा पुण्य कमा लूं । "रोहित की मां भी उसके व्यवहार में हुए अनेक परिवर्तनों को महसूस कर रही थी ।बात ही बात में जब उसने तीन -चार बार नीतू का नाम लिया। मां को सारी बात समझ में आ गई ।इधर नीतू भी आश्चर्यचकित थी ।हर एक बात को मजाक में उड़ाने वाले रोहित को पता नहीं क्या हुआ था कि कभी-कभी वह बातें करते करते रुक जाता ,कभी बातों के बीच में वह उसे अपलक अपनी और देखते पाती । पिछले दो -ढाई साल से रोहित के साथ थी परंतु यह व्यवहार उसके लिए उनका नया था ।उसने सिर झटक दिया कि शायद उसका वहम होगा।
सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। बीए के तीसरे वर्ष की परीक्षा और प्रभाकर की परीक्षा दोनों ही नजदीक थी । तभी नीतू की मां की तबीयत लगभग रोज ही खराब रहने लगी। नीतू बहुत परेशान रहने लगी थी ।एक दिन जब उल्टी में खून आया ,नीतू बहुत घबराई। रोहित ने नीतू को सलाह दी कि वह मां का पूरा चेकअप कराए।रिपोर्ट पढ़कर नीतू के पैरों तले मानो ज़मीन खिसक गई ।नीतू सकते में आ गई ।ऐसा कैसे हो सकता है ! अभी कुछ समय पहले ही तो पिताजी.... अब मां को कैसे कैंसर हो सकता है ।वह भी तो उसी ईश्वर की ही बेटी है ,उसके साथ इतनी बड़ी नाइंसाफी कैसे कर सकता है ?पर सच का कड़वा घूंट कभी भी परिस्थिति के अनुसार दया नहीं करता , वह तो बस पीना ही पड़ता है।नीतू के सिर पर पहाड़ टूट पड़ा था। डॉक्टर ने मां का जल्दी से जल्दी इलाज शुरू करने के लिए कहा था । जरा भी देरी करनी से मां की जान पर बन आती। घर के हालात पहले से ही खस्ता थे और मां की बीमारी ने उसे तोड़ ही दिया था ।अब निर्णय और व्यवस्था दोनों की जिम्मेदारी नीतू के कंधों पर ही आ पड़ी। नीतू कोई कमजोर लड़की नहीं थी बहुत साहसी थी ।पर माँ का कष्ट उसे कमजोर कर देता ।मां के सिवा उसका कोई नहीं था ।ऐसे हालात आने पर लोगों के पास संवेदना के बस औपचारिक दो बोल होते हैं। क्योंकि पास आने पर जिम्मेदारी और खर्चे दोनों ही बढ़ जाते हैं ।वह कोई भी उठाने को तैयार नहीं था ।पर नीतू इस दुनिया में अकेली नहीं थी ।नीतू जब मुश्किल हालातों से जूझ रही थी ।उस समय मैं और रोहित दोनों उसके हमकदम थे ।नीतू के चेहरे की एक तिरछी रेखा रोहित को तड़पा देती ।रोहित ने मुश्किलो से जूझने में नीतू का साथ देते हुए दिन -रात एक कर दिया । नीतू के घर की सुबह उसके आने के साथ होती और रात उसके विदा लेने पर ।हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे थे ।मां की कीमोथेरेपी में घर के अनेक सामान बेचने पड़े। पहले शादी के लिए की गई एफ डी तोड़ी फिर गहनों की बारी आई ।जब उसने मकान गिरवी रखा उसकी हिम्मत टूटने लगी ।लेकिन रोहित साथ खड़ा रहा ;दिलासा देता रहा ।नीतू के बहुत मना करने पर भी रोहित ने उसे परीक्षा नहीं छोड़ने दी । विवशता में भरतनाट्यम की कक्षाएं उसने अवश्य छोड़ दी परंतु बीए की परीक्षा दी। वह फोन करके उसे रात को पढ़ने की प्रेरणा देता रहता था ।यहां तक कि घरेलू काम में भी वह नीतू का हाथ बंटाने लगा था । नीतू ने एक दिन जब रोहित से कहा," तुम्हें पता है तुम बदल गए हो ?"रोहित फिर से उसकी तरफ एकटक देखते हुए मुस्कुरा उठा । मानो उसकी मौन आंखें कह रही हों ," तुम्हारे लिए कुछ भी !"जब नीतू परीक्षा देने जाती वह उसकी मां की देखभाल के लिए अपनी मां को उनके पास छोड़ देता ।अपने बेटे को बड़ा और जिम्मेदार होते देखकर उसकी मां की आंखों में कभी कभी आंसू आ जाते थे ।अंततः सभी की तपस्या का फल मिला ।एक दिन ऐसा भी आया जब परीक्षा का परिणाम और मां के स्वास्थ्य का परिणाम दोनों घर में खुशियां बिखेरने लगे।
रोहित की मां नीतू की मां से जब उसका हाथ मांगने के लिए आई उन्होंने उसकी मां से कहा," जिस बेटी ने अपनी हिम्मत से अपनी मां का जीवन वापस लौटा लिया ,वह मेरी बेटे को तो संभाल ही लेगी।" नीतू की मां की आंखों में आंसू आ गए वह बोली," मुझे दामाद तो शायद अच्छा मिल जाएगा पर रोहित जैसा बेटा कहां मिलेगा ।" उन्होंने बिना देर लगाए अपनी स्वीकृति दे दी । रोहित और नीतू दोनों ने एक दूसरे की और देखा ।रोहित के चेहरे की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी।आज नीतू की नजर धीरे से नीचे झुक गई । उसने उन अपलक नजरों का राज जान लिया था। दोनों को देखकर दोनों माएँ सम्मिलित रूप से हंस पड़ी । मैं उनकी शादी में शामिल नहीं हो पाई थी ।कोर्ट मैरिज कर के वे दोनों दंपत्ति बन चुके थे।रोहित और नीतू को तपस्या के फल के रूप में उनका प्यार मिल चुका था।
अचानक मुझें झटका लगा ट्रेन की गति पर विराम लगने के साथ -साथ मेरे विचारों की गति को भी विराम मिल चुका था। मैं मुस्कुराते हुए उठ खड़ी हुई ।मेरे सामने मेरा वही चिर -परिचित जोड़ा खड़ा मुस्कुरा रहा था । नीतू ने मुझे उलाहना दिया ,"शादी के समय तो तूने साथ नहीं दिया ,अब पूरा जीवन भी तेरे साथ के बिना ही गुजारना होगा क्या।" रोहित ने मुस्कराते हुए कहा" कहाँ खोई हुई हो ?दादर स्टेशन आ चुका है ।चलो।"मैं अपना बैग उठाते हुए उनके साथ पुराने दिन फिर से जीने के लिए चल पड़ी।
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल से